द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज यहां हम अपनी पुनर्कल्पना में शिक्षा प्रणाली के प्रथम भाग की चर्चा कर रहे। मुझे लगता है कि आने ...
द भ्रमजाल में एक बार फिर आपका स्वागत है। आज यहां हम अपनी पुनर्कल्पना में शिक्षा प्रणाली के प्रथम भाग की चर्चा कर रहे।
मुझे लगता है कि आने वाले वर्षों में शिक्षा का ढांचा पूरी तरह से बदल जाएगा। यह बदलाव केवल तकनीकी नहीं, बल्कि सामाजिक और दार्शनिक स्तर पर भी होगा। शिक्षा अब औपचारिक डिग्रियों या संस्थागत प्रमाणपत्रों की मोहताज नहीं रहेगी। जो परिवर्तन प्रारंभ हो चुका है, वह धीरे-धीरे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को अप्रासंगिक बना देगा, जबकि स्कूलों की भूमिका जरूर बनी रहेगी, लेकिन रूपांतरित होकर।
स्कूल शिक्षा का वह आधार है जहाँ केवल ज्ञान ही नहीं, सामाजिक व्यवहार, अनुशासन, सहभागिता और व्यक्तित्व के बीज पड़ते हैं। छोटे बच्चों को विशेष संरचित वातावरण की आवश्यकता होती है जहाँ वे भाषा, तर्क, संवाद, नेतृत्व और सह-अस्तित्व जैसे मूल गुण सीख सकें। इसलिए स्कूल की अवधारणा समाप्त नहीं होगी, लेकिन उसमें बदलाव ज़रूर आएगा। पारंपरिक कक्षा और पाठ्यपुस्तक की जगह अब तकनीक-समर्थित, रुचि-केंद्रित और समस्या-आधारित शिक्षण आएगा। शिक्षक अब सूचनाओं के स्रोत नहीं, बल्कि सहयात्री और मेंटर के रूप में काम करेंगे। गाँवों और कस्बों में भी डिजिटल उपकरणों के ज़रिए एक समान शैक्षणिक अनुभव संभव हो सकेगा।
इसके विपरीत, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की भूमिका तेज़ी से सिमट रही है। पहले जो शिक्षा केवल इन संस्थानों में उपलब्ध थी, वह अब ऑनलाइन माध्यमों से कहीं अधिक सुलभ, प्रभावी और कम लागत वाली हो गई है। Coursera, EDX, Udemy जैसे प्लेटफॉर्म दुनिया के श्रेष्ठ शिक्षकों और विशेषज्ञों को आम लोगों से जोड़ रहे हैं। अब यह ज़रूरी नहीं रह गया है कि कोई व्यक्ति 4 साल की डिग्री लेकर ही किसी फील्ड में प्रवेश करे। टेक्नोलॉजी, डिज़ाइन, मार्केटिंग, डेटा साइंस, यहाँ तक की मेडिकल और कानून जैसे क्षेत्रों में भी कौशल-आधारित शिक्षण का रुझान बढ़ा है।
भविष्य में कुछ प्रैक्टिकल और हैंड्स-ऑन विषयों, जैसे चिकित्सा, नर्सिंग, इंजीनियरिंग, बायोलॉजी, आर्किटेक्चर या फाइन आर्ट्स के लिए शारीरिक उपस्थिति और प्रयोगशालाओं, कार्यशालाओं या स्टूडियो जैसी संरचनाओं की आवश्यकता बनी रहेगी, लेकिन इनका स्वरूप भी पूरी तरह बदल जाएगा। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की जगह उद्योग-समर्थित लर्निंग सेंटर, ऑन-डिमांड माइक्रो-कोर्सेस और इमर्सिव टेक्नोलॉजी (जैसे AR/VR) आधारित सिमुलेशन प्लेटफॉर्म विकसित होंगे जहाँ छात्र सीधे कौशल सीखेंगे और प्रमाणपत्र की जगह काम के प्रमाण पेश करेंगे। इस तरह डिग्री-आधारित शिक्षा प्रणाली भी इन क्षेत्रों में धीरे-धीरे Skilling Hubs में बदल जाएगी।
कंपनियाँ अब यह देखने लगी हैं कि व्यक्ति ने क्या काम किया है, उसके पास क्या प्रोजेक्ट्स हैं, क्या वह समस्याओं को हल कर सकता है, न कि यह कि उसके पास किस विश्वविद्यालय की डिग्री है। AI और ऑटोमेशन के युग में डिग्री आधारित शिक्षा प्रणाली पीछे छूट रही है, क्योंकि वास्तविकता यह है कि कॉलेजों में पढ़ाया जा रहा पाठ्यक्रम कई बार दशकों पुराना होता है और बदलते बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होता। लोग अब Gig Economy, Freelancing और स्टार्टअप की दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं, जहाँ लचीलापन, रचनात्मकता और आत्मनिर्भरता ही असली योग्यता है।
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि विश्वविद्यालयों के महंगे ढांचे, प्रशासनिक बोझ और प्रवेश प्रक्रिया की जटिलता आम युवाओं के लिए शिक्षा को बोझ बना देती है। इसके विपरीत, ऑनलाइन माध्यम व्यक्ति को अपनी गति से, अपने समय पर, अपनी रुचियों के अनुसार सीखने की स्वतंत्रता देता है। यह स्वतंत्रता ही वह शक्ति है जो पुरानी शिक्षा व्यवस्था की दीवारों को धीरे-धीरे तोड़ रही है।
आज हम ऐसे संक्रमणकाल में हैं जहाँ विद्यालयीय शिक्षा की Innovative Restructuring होगी और विश्वविद्यालय प्रणाली धीरे-धीरे प्रतीकात्मक अस्तित्व में सिमट जाएगी। ज्ञान का लोकतंत्रीकरण अब महज़ सपना नहीं, बल्कि वास्तविकता बनता जा रहा है। आने वाले वर्षों में यदि कोई बदलाव स्थायी होगा, तो वह यह कि डिग्रियाँ अप्रासंगिक होंगी और कौशल ही नई डिग्री बन जाएगी।
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