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यहां About us पेज़ पर हम बता रहे हैं कि द भ्रमजाल क्या है? और इसे बनाने का उद्देश्य क्या है?

समझने योग्य चंद विशेष बातें!

The Bhramjaal एक ऑनलाइन ब्लॉग है। यह ब्लॉग सभी के लिए पूर्णतः मुफ्त है। हम किसी भी तरह का कोई Subscription fee नहीं लेते हैं।

यदि आप मानव की उत्पत्ति, ईश्वर का अस्तित्व, विज्ञान, धर्म, नास्तिकता, विकासवाद, विकासवाद का सिद्धांत, धर्म की वास्तविकता व तर्कसंगत विचार, लेख इत्यादि पढ़ने में रुचि रखते हैं, तो फिर आप बिल्कुल उचित जगह पधारे हैं। यहां हमने विभिन्न बुद्धिजीवियों के विचारों का विशाल संग्रह किया है। जो शायद आपको पसंद आए।

'द भ्रमजाल' ब्लॉग के माध्यम से हमने स्वतंत्र चिंतकों, तर्कशील लेखकों एंव कई ब्लॉगरों की रचनाओं को एक जगह समन्वित व संग्रहीत करके उन विचारों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।

हम समझते हैं कि मानवतावादी दृष्टिकोण रख कर लगातार प्रगतिशील लेखन करने वाले लेखकों के यह विचार अधिक से अधिक जन सामान्य तक पहुंचे। आज के बदलते हुए भारतीय युवाओं को इस तरह के ब्लॉग को पढ़ने की ज्यादा जरूरत है।

इस ब्लॉग का उद्देश्य क्या है?

इस ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य समाज सुधार के लिये निष्पक्ष चिंतन एवं वैज्ञानिक विचारों को प्रोत्साहित करना है। ब्लॉग के माध्यम से समाज में व्याप्त अन्धास्थाओं, अंधविश्वास, पाखण्ड, कुरीतियां, अवैज्ञानिकता और धार्मिक संगठनों द्वारा फैलाई जा रही भ्रांतियों को दूर कर एक तर्कशील व वैज्ञानिक चेतना युक्त समाज की स्थापना में सहयोग करना है। हम एक स्वस्थ्य व सुसंस्कृत समाज गढ़ने के पक्षधर हैं।

हम यह भी बताना चाहेंगे कि इस ब्लॉग के माध्यम से भारतीय दर्शन की प्राचीन परम्परा को अधिक से अधिक उभारने व दर्शाने का विनम्र व नवीन प्रयास कर रहें है जिसे "लोकायत दर्शन" कहते हैं। इस दार्शनिक परम्परा के अनुयायी ईश्वर की सत्ता पर विश्वास नहीं करते थे। उनका मानना था कि क्रमबद्ध व्यवस्था ही विश्व के होने का एकमात्र कारण है, एवं इसमें किसी अन्य बाहरी शक्ति का कोई हस्तक्षेप नहीं है।

भारतीय दर्शन की इस परम्परा को बलपूर्वक नष्ट कर दिए जाने का आभास मिलता है, क्योंकि हमारे प्रतिद्वंदी ग्रथों में वर्णित भौतिकवादियों के भाष्य और ग्रन्थ अब उपलब्ध नहीं है, न ही इस दार्शनिक धारा का अब कोई नाम लेने वाला बचा है। इस ब्लॉग के माध्यम से हमारा प्रयास मानवतावादी दृष्टिकोण को उभारने का रहेगा जो किसी भी संप्रदाय अथवा धर्म (Religion) के हस्तक्षेप से मुक्त हो।

ज्ञानार्जन तथा सुधार का विकास करना हमारा दायित्व है!

अतः हम समय-समय पर आवश्यक सार्थक बौद्धिक हस्तक्षेप का प्रयास करने के साथ ही समाज के ऐसे रूप पर प्रकाश डालते रहेंगे, जिनसे वर्तमान भारतीय समाज और प्राचीन भारतीय संस्कृति दबी और कुचली जाती रही है।

शोषित-उत्पीड़ित जनता के सम्बद्ध मुद्दों को प्राथमिकता देना, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक जनमुद्दों एवं संघर्षों को बढ़ावा देना, वैज्ञानिक व यथार्थ विश्लेषण पर आधारित आलेख को प्राथमिकता देना, लोक सांस्कृतिक चेतना का विस्तार, सम्प्रदायवाद, जातिवाद, अंधविश्वास, अपसंस्कृति एवं अश्लीलता के विरूद्ध जनजागरण, सामाजिक सरोकार के मुद्दों को प्राथमिकता देकर सम-सामयिक विषयों का सही व सटीक विश्लेषण तथा बेजुबानों की आवाज़ बनकर उनके हितों की सुरक्षा के लिए, निष्पक्ष व निर्भीक लेखन करना।

यहाँ समय समय पर उन पहलुओं की विवेचना होती रहेगी, जो हमें अंधविश्वास, कूपमंडूकता व जहालियत की तरफ ले जाते हैं और राष्ट्र की उन्नति में बाधक बनते हैं।

हमें इस उद्देश्य में पाठकों के एक बड़े वर्ग का हार्दिक सहयोग मिल रहा है। कुछ लोग अवश्य हमारी इस नीति से रुष्ट होंगे। उनसे नम्र निवेदन है कि हम इस समाज के एक अभिन्न अंग हैं, और हमारे मन में भी इसे एक आधुनिक, शक्तिशाली और प्रगतिशील रूप देने की अभिलाषा है।

Legal Note | ध्यान रखने योग्य बात

इस ब्लॉग के लेख विशुद्ध आलोचनात्मक शैली में लिखे व प्रस्तुत किये गये है। जो किसी एक व्यक्ति के नहीं हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में आलोचना करने के अधिकार के बारे में पुरज़ोर तरीके से बताया गया है।

साथ ही- जयहिन्द! न्याय की कुर्सी पर बैठे उन जजों को, जो सच के पक्ष में खड़े होते हैं। माननीय न्यायाधीश ने एक फैसला देते हुए ऋग्वेद के एक श्लोक का उद्धरण दिया था।

आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतो दब्धासो अपरितासउद्भिद:।

यानि हमारे पास चारों ओर ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें, जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से रोका न जा सके और जो अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हो।

भारतीय संविधान क्या कहता है?

The Bhramjaal promotes the Fundamental Duty of Art. 51A(h) of the Indian Constitution. i,e. Scientific temperament. And it's Fundamental right for Art.19(1) (a) Right to freedom of speech and Expression.

सन् 1950 में भारतीय संविधान के लागू होने पर अनुच्छेद 51A के अंतर्गत यहाँ के सभी नागरिक का मूल कर्तव्य- "(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें"। इसलिए भी हम सभी पाठकों के समक्ष 'स्वतंत्र विचार' रख कर नई प्रगति के लिए आशा जागृत करना अपना ध्येय समझते हैं, क्योंकि यह हमारा राष्ट्रीय दायित्व भी है।

अगर आप ईश्वर की सत्ता में अविश्वास रखते हैं, और मानव को ही इस जगत का पालनहार समझते हैं तो यहां आपका स्वागत है। यहाँ आप अपने प्रश्न, जिज्ञासाएं एवं नास्तिकता तथा धर्म (Religion) विषयक विचार पर तर्क-वितर्क कर सकते हैं, शर्त सिर्फ यह है की भाषा अपशब्द एवं व्यक्तिगत आक्षेपों से मुक्त होनी चाहिए।

यह एक लम्बी यात्रा की छोटी-सी शुरुआत है। पूरे देश में जन-जन तक सही विचार और नयी संस्कृति को ले जाना जितना ज़रूरी है उतना ही कठिन भी है। इस दुष्कर प्रयास में हमें आपकी सहानुभूति नहीं बल्कि सार्थक व आर्थिक सहयोग और सक्रिय सहभागिता की भी ज़रूरत है।

पुरानी वर्जनाओं को तोड़ कर सामाजिक परिवर्तन में एक नई आशा के साथ चलने के लिया हमारा सहयोग करें!

~ The Bhramjaal